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उत्तर प्रदेश News

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आजम खां की सदस्यता बहाल होने में ये है बड़ी अड़चन!

वॉयस ऑफ ए टू जेड न्यूज :-समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक आजम खां को नफरती भाषण देने के मामले रामपुर की एमपी-एमएलए सेशन कोर्ट ने बरी कर दिया है। इसी मामले में एमपी-एमएलए कोर्ट ने 27 अक्तूबर 2022 को आजम खां को तीन वर्ष की सजा सुनाई थी। इसके बाद उनकी विधानसभा की सदस्यता रद्द हो गई थी।

समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक आजम खां के नफरती भाषण मामले में बरी होने के बाद उनकी खत्म की गई सदस्यता का मामला बड़े सवाल के रूप में सामने आ गया है। यह सवाल संवैधानिक व न्यायिक दोनों ही नजरिए से महत्वपूर्ण है।

सवाल ये है कि आजम की सदस्यता निरस्त करने से रिक्त घोषित सीट पर जब नया विधायक निर्वाचित होकर शपथ ले चुका है, तो आजम की रद हुई सदस्यता बहाल कैसे हो? आगे अन्य मामलों में ऐसी स्थिति आए, तब क्या होगा? विधि विशेषज्ञों व कानून के जानकारों का कहना है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को नए सिरे से स्पष्ट दिशानिर्देश जारी करने चाहिए।

दरअसल, समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक आजम खां को नफरती भाषण देने के मामले रामपुर की एमपी-एमएलए सेशन कोर्ट ने बरी कर दिया है। इसी मामले में एमपी-एमएलए कोर्ट ने 27 अक्तूबर 2022 को आजम खां को तीन वर्ष की सजा सुनाई थी। इसके बाद उनकी विधानसभा की सदस्यता रद्द हो गई थी। सदस्यता रद्द होने के बाद रामपुर सीट पर उप चुनाव हुआ, जिसमें भाजपा के आकाश सक्सेना विधायक निर्वाचित हो गए। आकाश शपथ भी ले चुके हैं। 

अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि जिस मामले में दोषी होने पर सदस्यता रद हो सकती है, उसमें बरी होने पर बहाल कैसे हो? अमर उजाला ने इस संबंध में कई विधि विशेषज्ञों व कानून के जानकारों से बात की। विधि विशेषज्ञों का मानना है कि देश में इस तरह का यह पहला मामला है। इस मामले को संज्ञान में लेते हुए सर्वोच्च न्यायालय को अब स्पष्ट दिशानिर्देश जारी करने चाहिए। उनका मानना है कि एमपी-एमएलए कोर्ट से सजा होने के बाद अपील तक सदस्यता रद्द न होने का प्रावधान लागू होना चाहिए।

सदस्यता बहाल नहीं हो सकती, लेकिन सुप्रीम कोर्ट को दिशानिर्देश देने चाहिए

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंगनाथ पांडेय का कहना है कि आजम खां को एमपी-एमएलए कोर्ट से सजा होने के बाद उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय ने सजा पर स्थगन आदेश नहीं दिया था। नतीजन नियमानुसार रामपुर में उप चुनाव कराकर नए विधायक का निर्वाचन हुआ। उनका कहना है कि चूंकि अब वहां चुनाव हो चुका है इसलिए आजम खां की सदस्यता बहाल नहीं हो सकती है। लेकिन अब सेशन कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया है तो साफ है कि वह दोषी नहीं थे। ऐसे मामलों में अब सर्वोच्च न्यायालय को स्पष्ट दिशा निर्देश जारी करने चाहिए कि यदि संबंधित विधायक या सांसद अपील में बरी हो जाते हैं तो उनकी सदस्यता का क्या होगा।

सुप्रीम कोर्ट गाइड लाइन जारी करे, आजम की सदस्यता बहाल हो

सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप नारायण माथुर का मानना है कि जिस मामले में सजा होने पर आजम खां की सदस्यता रद्द हुई थी उस मामले में बरी होने पर अब सदस्यता बहाल होनी चाहिए। उनका कहना है कि लेकिन चूंकि उस सीट पर उप चुनाव हो चुका है, उप चुनाव में एक सदस्य निर्वाचित हो चुके हैं। ऐसे में उनकी सदस्यता तो रद्द नहीं हो सकती है। लेकिन यह देश में इस तरह का पहला मामला है, इसलिए अब वक्त आ गया है जब सर्वोच्च न्यायालय को ऐसे मामलों में स्पष्ट दिशा निर्देश जारी करते हुए रास्ता निकालना चाहिए।

उनका कहना है कि जिस प्रकार राज्यपाल या विधानसभा अध्यक्ष की ओर से विधायक की सदस्यता रद्द करने पर संबंधित विधायक को अपील के लिए चार महीने का समय देने का प्रावधान है उसी तरह आपराधिक मामले में सजा होने पर भी अपील स्वीकार होने तक सदस्यता रद्द नहीं करने का प्रावधान लागू करना चाहिए।

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन होना चाहिए

उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत ही आजम को दो वर्ष की सजा होते ही उनकी सदस्यता रद्द हुई थी। लेकिन यह पहला मामला है जब अपील में कोई विधायक बरी हुए हैं। ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय को ही अपील स्वीकार होने तक सदस्यता रद्द नहीं करने का प्रावधान लागू करना चाहिए। उनका कहना है कि भविष्य में इस तरह के मामलों के लिए अब लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन होना चाहिए। इसमें संबंधित विधायक को अपील के लिए एक निर्धारित समय अवधि मिले, अपील के निस्तारण की भी समयसीमा तय होनी चाहिए।

सर्वोच्च न्यायालय ही निर्णय लें

विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना का कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से ही किसी भी विधायक या सांसद को दो वर्ष या अधिक की सजा होने पर उनकी सदस्यता रद्द होती है। इसमें विधानसभा या लोकसभा की भूमिका केवल सीट को रिक्त घोषित कर निर्वाचन आयोग को सूचना भेजने तक की है। लिहाजा संबंधित विधायक के अपीलेंट कोर्ट से बरी होने पर क्या होना चाहिए इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट को ही निर्णय लेना चाहिए।

यह है मामला

- नफरती भाषण देने के आरोप में सपा के पूर्व विधायक आजम खां की सदस्यता 27 अक्तूबर 2022 को रद्द हुई।

- आजम खां की सदस्यता रद्द होने से खाली हुई सीट पर 5 दिसंबर 2022 को उप चुनाव हुआ।

- 8 दिसंबर को हुई मतगणना में रामपुर सीट पर भाजपा के आकाश सक्सेना विधायक निर्वाचित हुए।

- 24 मई को एमपी-एमएलए सेशन कोर्ट ने आजम खां को नफरती भाषण देने के मामले में बरी कर दिया।

एक अन्य मामले में भी सजा, इसलिए फिलहाल सदस्यता बहाल नहीं

बहरहाल यह बता दें कि आजम को छजलैट प्रकरण में भी मुरादाबाद की कोर्ट से दो वर्ष की सजा होने के कारण फिलहाल उनकी सदस्यता बहाल होने पर संदेह है। लेकिन भविष्य में यदि फिर किसी विधायक के साथ ऐसा मामला होता है तो उन्हें राहत कैसे मिल सकती है इसलिए यह सवाल महत्वपूर्ण हैं।